प्रज्ञा कुंज फाउंडेशन में हमारा उद्देश्य योग और ध्यान के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। हमारा मानना है कि ये अभ्यास आत्मज्ञान और अधिक संतुष्टिदायक जीवन की ओर ले जा सकते हैं।
🍀 ध्यान अविरल धारा 🍀
ध्यान जीवन की रहस्यमई चैतन्य शक्तियों के अद्भूत अंकुर को विकसित कर चेतना को पल्लवित करने की एक मात्र वह अनोखी और अनूठी विधा है जिसका वर्णन अचिंत्य, अविरल, अविराम चिन्मय है। अर्थात् ध्यान प्राणि के आत्म चेतना में स्थित वह बीज है जिसके पल्लवित होते ही प्राणी का अस्तित्व वटवृक्ष की भांति सुदृढ़ एवम् दिव्य अमर हो जाता है । ध्यान प्राणि के जीवन में घट रही घटनाओं का गहन आंकलन करने की क्षमता प्रदान करता है तथा बोध को विस्तारित कर ज्ञान के विवेचना की अनूठी कला को स्वसृजित करता है ।
ध्यान, मन के आधीन होकर प्राणि द्वारा परिस्थितियों के समक्ष स्वयं को घुटने टेक देने के प्रति जागरूक बनाता है तथा मन की अधीनता से मुक्ति का सहज सरल मार्ग प्रशस्त करता है, मन के हर कोने तक सहज रूप से सुव्यवस्थित ढंग से उतरने एवम् उसके प्रत्येक छल एवम् छद्म स्वरूप को देख , जान कर सुधार लेने की अनूठी विधा को विकसित करता है।
ध्यान का आरंभ बीत गए जैसे तैसे जीवन से, अब भी बीत रहे और चल रही जीवन शैली की अव्यवस्थाओं, उलझनों ,एवम् अड़चनों को ठीक-ठीक समझ एवम् बूझ पाने तथा गहराइयों से निरख़ कर सहज समाधान जान पाने की क्षमता प्रदान करता है जिससे मानव के मस्तिष्क के उस सुषुप्त हिस्से का होश सहित अनावरण होता है जो कि सामान्य मानव के लिए आजीवन ही सोया हुआ रह जाता है , तथा इस मस्तिष्क का प्रयोग करके प्राणी उच्च कोटि के बौद्धिक संपदा का स्वामी होने लगता है जिससे उसके जीवन में परम् चैतन्य गहन रहस्यों के प्रति जागरूकता के गहन अनुभव स्फूटित होते हैं जो अनुभव प्राणी की जीवन शैली को पूर्ण रूप से बदल देने में पूर्ण सक्षम होते है और तब प्राणि के मूल का उद्भव, विकास होने लग जाता है , जिससे उसके जीवन में किसी भी तथ्य को, उसके पृथक-पृथक किन्तु प्रत्येक पहलू पर गौर करने की दृष्टी उपलब्ध हो जाती है, और यही दृष्टी प्राणि को सामान्य मानव से उठकर बहुत ऊपर के दर्शन को जन्म देती है , जिससे वह प्राणी धीरे-धीरे सारी व्यर्थ को बातों से स्वयं ही अलग होता चला जाता है, तथा जगत में रहते हुऐ भी गहन एकांत एवम् असीम शान्ती का अनुभव करता रहता है, तथा तब फिर वह दो हिस्सों में स्वयं को ठीक-ठीक विभाजित कर लेता है , एक वह सामान्य मानव जो बाहर जिएगा और विचलित भी नहीं होगा, तथा एक हिस्सा वह जो इस बाह्य शांति और समृद्धिबोध का सार्थक प्रयोग अपने अंतर चेतना को विकसित करने में निरंतर जुटा रहेगा , जिससे मूल आत्म तत्त्व स्वरूप चैतन्य जीवन विकसित होता है। जीवन में इस कला को विकसित कर लेने वाला प्राणी ही पूर्ण दृष्टा भाव को उपल्ब्ध हो सकता है तथा साथ ही साथ जीवन में घट रही प्रत्येक घटना का मात्र साक्षी हो जाता है जहां कोई तर्क वितर्क संदेह टिकता ही नही वहां केवल परम् स्वीकार भाव ही चिर स्थाई होता चला जाता है, तथा प्राणि साक्षी भाव में स्वयं को ऊंचे गहन तक पहुंच कर अपने पंख बस पसार दिए जाने वाले बाज़ पक्षी की तरह बस तिर रहा पाता है, जहां अब कोई प्रयास शेष न रहा, ना कोई क्रिया अब विशेष रही, कोई शक्ति प्रदर्शन अब न रहे, बस स्वयं को अस्तित्व को गोद में छोड़ कर बस उस छोड़ में छूट जाना हुआ, जिससे परम् अस्तित्व उस प्राण की अविराम चेतना में पूर्ण बोध का गहन अनुनाद फोड़ता है जिससे उस प्राणि को चेतना के अंतरनांद में ओंकार नांद गुंजायमान होने लग जाता है और वह प्राणि परम् पूर्ण बोध को उपलब्ध होने लग जाता है तथा सच्चिदानंदमयम अवस्था में तिरोहित होने लग जाता है , इस अवस्था को उपलब्ध प्राण परम् चैतन्य, बोधिधर्मा स्वयं के मूल को पुनर्स्थापित कर लेता है तथा स्वयं की तथागत अवस्था का सृजन कर लेता है, जिसे योगी, साधक, मुनि, संत, साधु ज्योतिरपुंज अविराम चैतन्य विश्रांति कुंज कहते हैं।
*प्रभु प्रसाद स्वरूप स्वरचित ध्यान गहन पुष्पुदल*
------ सद्गुरू मोक्षाअरिहंत
🍀 अलख आह्वाहन 🍀
उठो जागो अपने मुर्दा प्राणों में जान भरो
सोई आत्माओं में नव स्फूर्ति नव प्राण भरो
सो गया सत्य है, संकल्प हैं ऊंघते से
सो गई जिज्ञासा और उत्कंठा, आशाओं में ही बस हो रहे झूमते
मानवता के कर्म शिथिल हो गए, स्वा कार्यों तक बस में मानव सिमटा
धर्म सिमट कर बस मतभेदों और द्वंदो में लिपटा
पशु से भी अधम गति में जीने की जिद में मानव उलझा
अहंकार की तपती ज्वाला में हर ओर से बस मानव ही झुलसा
लहूलुहान है मानवता की सत्यमूर्ति, आहत संपूर्ण धरा हो आई
फिर भी ना जाग सका ये मानव कर रहा प्रति पल मानवता पर ही आघात
तेरे मेरे के छुद्र मतभेदों में हम ने तो कब का दम तोड़ा
हर ओर से बस दंभ अहंकार ने है नाता जोड़ा
कहते थे के मानव मरता था और भटकती थी आत्माएं
आज मर गई आत्मा है भटक रहा है इन्सान
उठो जागो सत्य संकल्प सूत्र से जुड़कर सब
मानवता की पावन पृष्ठभूमि का अंतर्नाद जगाओ
बन लेना भगवान बाद में पहले तो मानव बनकर ही दिखलाओ
उठो जागो युग के मुर्दा प्राणों में जीवन धार भरो
सुषुप्त हुई आत्माओं में नव स्फूर्ति नव चेतन प्राण भरो
ॐ परमात्मने नमः ॐ
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