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प्रज्ञा कुंज फाउंडेशन के संस्थापना का दिव्यतम अलख प्रखर जाग्रत उद्देश्य


प्रज्ञा कुंज, समस्त ब्रह्माण्ड के चराचर जीव जगत प्राणि मात्र के कल्याणार्थ, सदा संकल्पित एवम् समर्पित है, तथा सदा सर्वदा अनंत कालों तक अपनी आध्यात्मिक चेतना के अलख अभय अमिट दिव्य ज्योतिर्मय चैतन्य शक्ति के साथ संप्राण एवम् समर्पित रहेगा, जो आर्यावर्त भरतखण्ड की पावन अतुल्य धरोहर - ध्यान, योग साधना, की दिव्य अनुपम रहस्ययुक्त संपदा को पुनर्जीवित करना तथा सृजन के नव पल्लव विकसित करने हेतु तटस्थ एवम् संकल्पित तथा समर्पित है।
प्रज्ञा कुंज, आध्यात्मिक चेतना की अलख धारा के परम् चैतन्य दिव्य सद्गुरु स्वामी मोक्षाअरिहंत , के पावन प्रज्ञात्मक सानिध्य में संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याणार्थ परम् ब्रह्म चैतन्य विराट अस्तित्व परमात्मा द्वारा प्रदत्त दिव्य उपहार ध्यान, योग, अष्टांग योग, बोधि दर्शनम, दृष्टा, साक्षी, सृजन साधना, कुंडलिनी शक्ति योग, विपश्यना, देशना, एवम् प्रज्ञा सहित अन्य ध्यान की गहन गूढ़तम रहस्यमई विधा एवम् विद्याओं की अनुपम निर्झरा की अमृत वर्षा हेतु संकल्पित है। प्रज्ञा कुंज समस्त मानव जाति का दिव्य आह्वाहन एवम् आत्मीय स्वागत करता है , प्रज्ञा कुंज प्रांगण के विराट अध्यात्मिक वट वृक्ष में साधक स्वयं के दिव्य बोधि, गहन होश, संकल्प, समर्पण, अनुभूति युक्त पुनीत साधना के गूढ़तम रहस्यों का उद्दीपन एवम् उपलब्धि कर सकते हैं। प्रज्ञा कुंज सम्पूर्ण आर्यावर्त की चिर प्राचीर संस्कृति ध्यान योग साधना के माध्यम से आध्यात्मिक चेतना का उद्भव एवम् संचार करता है तथा समस्त जन मानस सहित सम्पूर्ण प्रकृति एवम् चराचर जीव जगत प्राणि मात्र के जीवन शक्ति के कल्याणार्थ, अस्तित्व स्वरुप तक अलख जागरण में संप्राण फूंकता है तथा जीवन रहस्य धारा प्रसारित एवम् प्रवाहित करने हेतु तटस्थ, संकल्पित, एवम् समर्पित है। जिस हेतु परमात्मा के पावन कुंज ,प्रज्ञा कुंज के प्रांगण से दिव्य अस्तित्ववान बोधियुक्त साधक अनवरत संकल्प सहित निरंतर अग्रसर एवम् प्रयासरत हैं, तथा सभी साधक अपने जीवन की अमूल्य निधि समय एवम् अन्य सभी प्रकार के सहर्ष सहयोग हेतु तत्पर, समर्पित एवम् प्रस्तुत हैं।
यह प्रज्ञा कुंज समस्त आर्यावर्त की अनंत युगों-युगों से काल कालांतर से चली आ रही अद्भुत रहस्यमई चिर प्राचीर गूढ़ रहस्यनिधि शिव स्वयंभू अवस्था बोधि दर्शनम ध्यान, योग, साधना एवम् समाधि योग हेतु तटस्थ एवम् संकल्पित है तथा गहन उत्कंठा एवम् अभीप्सा युक्त खोजियों ,संपूर्ण भारत वर्ष सहित सकल ब्रह्माण्ड के मुमुक्षुओं, तथा प्राणियों के दिव्य प्राणों में स्फूर्ति, चेतना का अलख नाद गुंजायमान करने तथा मानव जीवन की अनंत कालों से सुषुप्त चेतना को जागृत करने के साथ-साथ समस्त ब्रह्माण्ड के चराचर जीव जगत प्राणि मात्र के अस्तित्व स्वरुप के कल्याणार्थ आत्मीय बोध एवम् अतुल्य होश से सृजित गूढ़ रहस्यों के साथ समर्पित है।
प्रज्ञा कुंज देवी मां वसुन्धरा की परम् प्रिय मां भारती , एवम् युग पुरुष आर्यावर्त सहित समस्त विश्व के मानवों एवम् दिव्य चेतनाओं का , हर्षित पुलकित उत्कर्षित विराट अस्तित्व की ओर से आत्मीय स्वागत एवम् आह्वाहन करता है। जहां अभीप्सा एवम् उत्कंठा के गहन बोधि निर्झरा की अलख अमृत वर्षा में खोजियों का अभ्युदय परमात्मा सुनिश्चित करें तथा इस पावन संकल्प शक्ति की अलख चेतना की अविराम यात्रा के विजयरथ की श्रेष्ठ ध्वजा बनकर दिव्य चेतना का शीर्ष उद्घोष करें , स्वयं का अनंत अलख दिव्य ज्योर्तिमय आत्मपुंज जागृत करें, तथा ध्यान योग साधना के अभ्युदय एवम् उद्घोष में प्रसून पारितोषक बनकर संपूर्ण धरा सहित सकल ब्रह्माण्ड को सुगंधित करें । स्वयं का कल्याण करें तथा मानवता के सर्वोत्तम कल्याण के कारक सिद्ध हों।

🍀 अलख आह्वाहन🍀

उठो जागो अपने मुर्दा प्राणों में जन भरो
अहंकार की तपती ज्वाला में हर ओर से बस मानव ही झुलसा
लहूलुहान है मानवता की सत्यमूर्ति, आहत संपूर्ण धरा हो आई
फिर भी ना जाग सका ये मानव कर रहा प्रति पल मानवता पर ही आघात
तेरे मेरे के छुद्र मतभेदों में हम ने तो कब का दम तोड़ा
हर ओर से बस दंभ अहंकार ने है नाता जोड़ा।
कहते थे के मानव मरता था और भटकती थी आत्माएं
आज मर गई आत्मा है भटक रहा है इन्सान
उठो जागो सत्य संकल्प सूत्र से जुड़कर सब

मानवता की पावन पृष्ठभूमि का अंतर्नाद जगाओ
बन लेना भगवान बाद में पहले तो मानव बनकर ही दिखलाओ

उठो जागो युग के मुर्दा प्राणों में जीवन धार भरो
सुषुप्त हुई आत्माओ में नव स्फूर्ति नव चेतन प्राण भरो



ॐ परमात्मने नमः ॐ

हे सदा सर्वदा विराट अस्तित्व सच्चिदानंदितोमय प्रफुल्लित उत्कर्शित हर्षित परम् चैतन्य प्रभु परमात्मन आपको अंनत अनंत धन्यवाद प्रभू

इस समूची सृष्टि के दिव्य तेज़ पुंज , हे स्वामी, हे अंतर्यामी हे विश्व विधाता, हे महारहस्य ज्ञानपुंज, हे चैतन्य निधि के सृजनकर्ता परम प्रभु आपकी अनंतोनंत जय घोष हो, आपकी असीम कृपा का अनंत उद्घोष हो।

हे अनाथो के नाथ, हे पूरण स्वामी, हे परम् प्राण शक्ती के कुंज, हे अंनत व्योम के महापुंज, हे अतुल्य माधुर्ययुक्त प्रेम के मूल सृजक , हे परम् खछ चेतना के परितोष, हे महाबोधी के अनंत बोध, हे अचिंत्य परम् अव्यक्त, हे महामौन, हे परम् वक्ता, हे परम् सत्ता, हे पूर्णदृष्टा, हे विराट अस्तित्व परम् साक्षी, हे अविरल ऊर्जापुंज के मधुर प्रवाह, हे अविराम विराम, हे परम् अनुभूति धाम, हे महा महामोक्ष विश्राम, हे शाश्वत सत्य के महा परिआयाम, हे अलख निरंजनजई प्रज्ञा के शिखरतोष, हे परम् चैतन्य कुंडलिनी शक्ती के उन्मुक्त उद्घोष, हे होशयुक्त बोध तथा बोधियुक्त महाहोश के पारितोष, हे निर्वाण सूत्र, हे परम् समाधी कुंज रहस्यव्योम हे परम् दिव्यात्मन , हे परमात्मन आपकी जय हो आपकी जय हो आपकी जय हो। संपूर्ण स्वांस के प्रत्येक अंजुमन से आपकी जय जय जय का उद्घोष हो ।

यह समूचा सकल अस्तित्व , पूर्ण ब्रह्माण्ड आपको अंनत अनंत प्रेम करना चाहता है, आपमें ही विलीन, लीन तथा तल्लीन होना चाहता है । हे प्रभू , हे करुणानिधि समस्त ब्रह्माण्ड के चराचर जीव जगत की प्राण शक्ति पर अपनी प्रेम निधि का अविरल पुंज प्रवाह करें, समस्त मानव चेतनाओ को जागृत करें, तथा जगत के समस्त चर अचर प्राणिओ का का कल्याण करें प्रभू, सभी निरोगी हो आरोग्य को धारण करें, सभी स्वस्थ बोध से परिपूर्ण रहे, सभी सकल माया जनित दुखों से मुक्त हों, सभी के अंनत अस्तित्व स्वरुप जीवन में चेतना का पूर्ण उद्भव हो , सभी में स्वयं आपकी दिव्य स्वयंभुता का अद्भुत संचार हो , हे प्रभू आपको अनंत अनंत वंदन अभिनंदन स्वागत प्रणाम है।
आपके इस  महामूल अस्तित्व मोक्षाअरिहंत की हर जीवंत स्वांस स्वांस से जगत कल्याण हेतु अनंत महासमर्पण स्वीकर हो प्रभू

-- सदगुरु मोक्षाअरिहंत एवम् समस्त ध्यान कुंज तथा प्रज्ञा कुंज परिवार

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